संत मलूकदास: निर्भय भक्ति के स्वर

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🕊️ संत मलूकदास: निर्भय भक्ति के स्वर

"मलूक कहै नर जानिए, जो मन ते मन को मारै।
भक्ति भरी जब वाणी बोले, तब सत्य अमृत उभारै।"


🌿 परिचय

विवरण

जानकारी

नाम:

संत मलूकदास

जन्म:

1574 ई. (प्रयाग/कड़ा), उत्तर प्रदेश

धार्मिक परंपरा:

निर्गुण संत परंपरा

भाषा:

ब्रज, अवधी, सधुक्कड़ी

प्रभाव:

जनजागरण, सामाजिक समता, भक्ति साहित्य

विशेषता:

निर्भीक संत जिन्होंने कट्टरता पर प्रहार किया

🧘‍♂ जीवन दर्शन

  • संत मलूकदास का जीवन सादगी, निडरता और भक्ति का अद्भुत उदाहरण था।
  • उन्होंने कभी किसी धर्म, मूर्ति या कर्मकांड की अंधश्रद्धा को नहीं अपनाया।
  • उनकी वाणी ने समाज में अंधविश्वास, जातिवाद और पाखंड के खिलाफ आवाज उठाई।

🔥 शिक्षा और विचार

विषय

विचार

ईश्वर की खोज

बाहर नहीं, आत्मा के भीतर है।

धर्म

कोई एक मार्ग श्रेष्ठ नहीं; सभी में प्रेम चाहिए।

मूर्तिपूजा

मन की शुद्धि ही सच्ची पूजा है।

जातिवाद

एक ही ईश्वर की संतान सब – कोई बड़ा न कोई छोटा।

भाषा शैली

सरल, व्यंग्यात्मक, तर्कपूर्ण, लोक भाषा में

📚 काव्य और साहित्य

  • संत मलूकदास की वाणी का संग्रह "मलूकवाणी" के नाम से प्रसिद्ध है।
  • उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता, भक्ति और आत्मज्ञान पर हजारों दोहे, पद रचे।
  • उनकी रचनाओं में लोक जीवन, भक्ति, तर्क और करुणा का अद्भुत संतुलन है।

🌟 प्रसिद्ध दोहे

"मलूक कहै नर जानिए,
जो मन ते मन को मारै।
निजता और मोह तजि,
समता में ही संसारै।"

"पाथर पूजे हरि मिले,
तो मैं पूजूं पहार।
मलूक कहै चाकी भली,
पीस खाय संसार।"
(कबीर की तरह ही, प्रतीकों से व्यंग्यात्मक उपदेश।)


🕊️ मलूकदास की निर्भीकता

  • अकबर से लेकर औरंगजेब तक के समकालीन, संत मलूकदास ने सत्ता से भी सच कहा।
  • उनकी वाणी ने साम्राज्यवादी कट्टरता को चुनौती दी और समरसता का मंत्र दिया।
  • उन्होंने भक्ति को जाति, धर्म, संप्रदाय के बंधनों से मुक्त कर दिया।

🔔 आज के लिए संत मलूकदास क्यों प्रासंगिक?

  • जब समाज धर्म के नाम पर बंट रहा हो, मलूकदास की वाणी सत्य और प्रेम का राग है।
  • आत्मज्ञान, तर्कशील भक्ति, और मानवीय मूल्यों की आज भी उतनी ही आवश्यकता है।

 

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