👑 संत पीपा: एक राजा जिसने भक्ति को राज्य बनाया

"तजि लियो राज सिंहासन,
पीपा हरि भजन रत है।"
🧘♂️ परिचय: संत पीपा
विवरण |
जानकारी |
जन्म: |
15वीं शताब्दी, गागरोन (राजस्थान) |
धार्मिक परंपरा: |
निर्गुण भक्ति, वैष्णव संप्रदाय |
पहचान: |
राजा से संत बने, संत मत के प्रमुख प्रचारक |
भाषा: |
ब्रज, हिंदी |
प्रभाव: |
भक्ति आंदोलन, नाथपंथ, कबीर पर प्रभाव |
🌿 राजमहल से विरक्ति तक
संत पीपा पहले गागरोन के राजा थे। एक दिन मन में ज्ञान की आग जली और उन्होंने राज्य त्याग दिया।
नाथयोगियों के संपर्क में आए और आत्म-खोज की ओर मुड़ गए।
"राज सिंहासन छोड़े पीपा,
हरि रंग में तन-मन डोले।"
🔥 आध्यात्मिक संदेश
- ईश्वर मंदिर या मूर्ति में नहीं, अपने भीतर है।
- जाति, धर्म, वर्ण, लिंग से परे, आत्मा का परमात्मा से मिलन ही भक्ति है।
- गुरु के बिना आत्मज्ञान संभव नहीं।
📚 वाणी और दर्शन
ग्रंथ |
जानकारी |
गुरु ग्रंथ साहिब |
पीपा जी के 1 पद संग्रहीत हैं। |
लोक साहित्य |
उनकी वाणी राजस्थान, मध्यभारत में प्रसिद्ध है। |
भक्ति गीत |
सादा, पर मार्मिक। भक्ति, विरक्ति, आत्मसमर्पण से भरपूर। |
🌟 प्रसिद्ध वचन
"पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूं पहार।
ताते तो चाकी भली, पीस खाए संसार।"
(अगर पत्थर पूजने से भगवान मिलते, तो पहाड़ ही श्रेष्ठ होते।)_
"मन माहीं राम बसा है, पूजो उसे दिन रात।
पीपा कहे, गुरु बिन नहीं मिले प्रभु बात।"
🧭 उनका योगदान
- राजा से संत बनने का उदाहरण बनकर उन्होंने समाज में आत्मविकास का संदेश फैलाया।
- संत परंपरा में त्याग, तप और भक्ति का अनूठा संगम हैं।
- उनका जीवन बताता है कि सच्ची भक्ति में सत्ता और ऐश्वर्य तुच्छ हो जाते हैं।
🙏 आज की दुनिया में संत पीपा
आज भी जब दुनिया भौतिकता और भेदभाव से जूझ रही है, संत पीपा की शिक्षा हमें भीतर झाँकने की प्रेरणा देती है।
- राजा होते हुए साधु बनना — अहंकार का विसर्जन।
- भक्ति में समरसता — सबको साथ लेकर चलना।
- स्वयं की खोज — सच्ची मुक्ति का मार्ग।