संत सहजोबाई: निर्गुण की साधिका और नारी आत्मा की वाणी

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🌸 संत सहजोबाई: निर्गुण की साधिका और नारी आत्मा की वाणी


"सहज पंथ की कहूं कहानी,
मन के भीतर खोजे ज्ञानी।"


📌 संक्षिप्त परिचय

विवरण

जानकारी

नाम

संत सहजोबाई (Sahjobai)

काल

17वीं शताब्दी

सम्बंध

निर्गुण भक्ति परंपरा, संत दादू की शिष्या

भाषा

ब्रज, हिंदी

मुख्य विषय

आत्मा, परमात्मा, स्त्री चेतना, सहज योग

👣 जीवन परिचय

सहजोबाई, संत दादू दयाल की प्रमुख शिष्या थीं और दादूपंथ की एक उच्चकोटि की साधिका मानी जाती हैं।
उनका जीवन तपस्या, ज्ञान और सहज भक्ति का अद्वितीय समन्वय था। उन्होंने नारी आत्मा की स्वतंत्र पहचान को संत परंपरा में मुखरता से प्रस्तुत किया।


🧘 भक्ति दर्शन

तत्व

विचार

सहज योग

बाह्य साधनों से नहीं, अंतर की साधना से ईश्वर का अनुभव

निर्गुण भक्ति

निराकार ईश्वर की साधना, बिना मूर्ति या कर्मकांड

नारी चेतना

स्त्री को आत्मस्वरूप में देखने का आग्रह

ज्ञान-भक्ति योग

तात्विक ज्ञान और भावनात्मक भक्ति का संतुलन

📜 रचनाएँ

उनकी रचनाओं में गहन आध्यात्मिक अनुभूति है। उनकी प्रमुख रचना है: सहज प्रगास

कुछ पंक्तियाँ:

"मैं तो अनुरागी सहज की,
नाहिं धरम न कर्म।
गुरु की दृष्टि पाई जब से,
टूट गया भ्रम।।"

"माटी की देह, गगन की बात,
सहज कहे मन छोड़ विकलता।
नारी हूं पर आत्मा हूं,
सुन जगत की मूढ़ता।।"


🪷 योगदान

क्षेत्र

योगदान

महिला संत परंपरा

संत रचनाकारों में एक अत्यंत प्रतिभाशाली महिला संत

निर्गुण संत दर्शन

दादूपंथ को विकसित करने में प्रमुख भूमिका

सामाजिक दृष्टिकोण

स्त्री को आत्मिक स्वतंत्रता की दृष्टि से प्रस्तुत किया

भाषाई सरलता

सहज, सादी भाषा में गूढ़ तत्वों को व्यक्त किया

🧠 विचारधारा की झलक

  • आत्मा स्त्री-पुरुष से परे है।
  • सच्चा योगी वही जो भीतर देखे।
  • स्त्री को भी ईश्वर-प्राप्ति का उतना ही अधिकार है जितना पुरुष को।

📌 विशेष तथ्य

  • संत सहजोबाई की रचनाएँ आज भी दादूपंथी साधुओं द्वारा गाई जाती हैं।
  • उन्होंने सहज योग को शब्दों में ढाला – बिना कठोर व्रत-उपवास के परम सत्य की खोज।
  • उनके पदों में नारीवादी चेतना की भी एक झलक मिलती है।

💬 प्रमुख संदेश

"आत्मा की कोई जात नहीं,
नारी हो या नर दोनों ही ब्रह्म रूप हैं।"

 

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