संत धरनीदास जी: निर्गुण ज्ञान की क्रांति के अग्रदूत

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🌿 संत धरनीदास जी: निर्गुण ज्ञान की क्रांति के अग्रदूत


"धन को तज, तन को तज,
मन भीतर जो समाया।
धरनी कहे वह ही सच्चा,
जिसने निज को पाया॥"


📌 परिचय सारणी

विवरण

जानकारी

नाम

संत धरनीदास जी

जन्म

17वीं शताब्दी (लगभग 1646), रोहतास, बिहार

परंपरा

निर्गुण संत परंपरा, वैष्णव-भक्ति आंदोलन

स्थापना

धर्मदासी सम्प्रदाय के संस्थापक

भाषा

अवधी, ब्रज, भोजपुरी, मगही

प्रभाव

गरीब, दलित, वंचित समाज को आध्यात्मिक चेतना

🧭 जीवन यात्रा

धरनीदास जी का जन्म एक कुलीन कायस्थ परिवार में हुआ। किंतु वे बचपन से ही संसार की क्षणभंगुरता को समझ गए। एक ब्राह्मण की मृत्यु देखकर उनके मन में वैराग्य जागा और वे आध्यात्मिक ज्ञान की खोज में निकल पड़े।

उन्होंने पाखंड, जातिवाद और मूर्तिपूजा का विरोध करते हुए सीधे ब्रह्म से जुड़ने की बात कही। संत कबीर और गुरु नानक की तरह ही, उन्होंने अपने उपदेशों में निर्गुण ब्रह्म की महिमा का गायन किया।


🕊️ सिद्धांत व दर्शन

विषय

विचार

निर्गुण ब्रह्म

ईश्वर निराकार, अव्यक्त और चेतन है

समता का भाव

सब जीव एक ब्रह्म के अंश हैं, भेद मिथ्या है

समाज सुधार

मूर्ति पूजा, जात-पात, धार्मिक आडंबर का विरोध

ज्ञान की प्रधानता

अनुभवजन्य सत्य और आत्मचिंतन पर बल

धर्मदासी पंथ

सत्य, सेवा और साधना आधारित संप्रदाय

📚 रचनाएँ

धरनीदास जी की वाणियाँ अब भी धर्मदासी आश्रमों में पढ़ी और गाई जाती हैं। कुछ महत्वपूर्ण पद—

"धरनी कहे सुनो रे भाई,
न भीतर ना बाहर,
जो रम्यो आत्मा में,
सो ही सच्चो साहिब अपार॥"

"जाति पाति ना पूछो कोई,
हरि बस रह्यो जीव के लोई।"

"कागद की पोथी पढ़-पढ़ के,
कहाँ पायो ज्ञान?
मन की गांठ खुली नहीं,
तो सब बेमानी जान॥"


🛕 धर्मदासी सम्प्रदाय

विषय

विवरण

स्थापक

संत धरनीदास जी

मुख्य स्थान

धरनी धर्मस्थान, रोहतास, बिहार

अनुयायी क्षेत्र

बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, बंगाल

शाखाएँ

सैकड़ों मठ और सत्संग केंद्र

प्रमुख ग्रंथ

धरनी वाणी, रहस्य गीता (लोकसंस्करण)

🌍 प्रभाव

क्षेत्र

योगदान

आध्यात्मिक जागरण

निर्गुण विचारधारा का विस्तार ग्रामीण भारत में

शिक्षा और समाज

निम्न जातियों को समान आध्यात्मिक अधिकार दिलाना

भाषा में भक्ति

क्षेत्रीय भाषाओं को भक्ति की अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया

धर्मदासी पंथ

आज भी लाखों अनुयायी, साधना और सेवा में रत

💎 शिक्षाएँ

"धर्म वह जो अंतर में उतरे,
शब्द नहीं जो केवल बोले।
धरनी बोले वे ही ज्ञानी,
जो भीतर के दीप को खोले॥"

 

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