🌾 संत भीखन दास: मगध की संत परंपरा के निर्गुण गायक

"भीखन बोले प्रेम से, पायो राम सनेह।
ना माला, ना तिलक से, घट में बसे अलेख।"
📌 परिचय सारांश
विवरण |
जानकारी |
नाम |
संत भीखन दास |
काल |
16वीं शताब्दी (अनुमानित) |
जन्मस्थान |
गया / नवादा (मगध क्षेत्र, बिहार) |
सम्बंध |
कबीर संप्रदाय, निर्गुण भक्ति |
भाषा-शैली |
सधुक्कड़ी, अवधी, भोजपुरी मिश्रित |
प्रमुख योगदान |
"भीखन बानी", भक्ति भजन, सत्संग वाणी |
📚 संत भीखन की आध्यात्मिक धारा
🔷 संत कबीर के समकालीन या अनुयायी
भीखन दास जी को कबीर का समकालीन या शिष्य माना जाता है। उन्होंने कबीर के निर्गुण मार्ग को अपनाया, पर उसे अपनी भाषा और लोकचेतना से और अधिक गहराई दी।
🔷 आत्मा-चिंतन और भेदभाव विरोध
"भीखन कहे न देखिए, ज्यों आँखन के ही दोष।
भेद न राखो जीव से, राम बसे हर कोश।।"
🌍 मगध क्षेत्र में प्रभाव
- गया, नवादा, और जहानाबाद के गाँवों में भीखन सत्संग मंडली प्रचलित है।
- इनकी वाणियाँ लोक गायकों द्वारा चैती, निर्गुण, और विरह गीतों में आज भी गाई जाती हैं।
🌸 उनकी वाणी के प्रमुख विषय
विषय |
दृष्टिकोण |
ईश्वर का स्वरूप |
निर्गुण, निराकार, घट-घट वासी |
मूर्तिपूजा विरोध |
भक्ति का केंद्र आत्मा में; मंदिरों से अधिक आत्मावलोकन ज़रूरी |
जात-पात |
तीव्र विरोध; समता और आत्मबोध पर ज़ोर |
प्रेम और समर्पण |
ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग – सच्चा प्रेम और भक्ति |
🎶 प्रसिद्ध वाणी-पंक्तियाँ
"भीखन भीतर देख रे, बाहर जगत न छूटै।
जो घट मांहीं राम बसे, काहे मंदिर फूटै?"
"घट भीतर जरा जोति, देखत ही हो प्रकाश।
भीखन कहे, देखे वही, तज दे मोह-विनाश।"
📌 उनकी रचनात्मक धरोहर
संग्रह/कृति |
विवरण |
भीखन बानी |
संत वाणियों का संग्रह, सधुक्कड़ी शैली में |
लोकपाठ रूपांतरण |
आज भी स्थानीय लोक गायक उनके पदों को गाते हैं |
पांडुलिपियाँ |
कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार, गया क्षेत्र के मंदिरों में उपलब्ध |
🌿 बिहार में संत भीखन की स्मृति
- गया में संत भीखन आश्रम की स्थापना हाल के वर्षों में हुई है।
- "भीखन मेले" का आयोजन नवादा में चैत्र पूर्णिमा पर होता है।
- यूट्यूब और लोक मंचों पर इनके भजन पुनः लोकप्रिय हो रहे हैं।
🤝 तुलनात्मक संत परंपरा
संत |
प्रभाव क्षेत्र |
परंपरा |
भाषा |
कबीर |
उत्तर भारत |
निर्गुण संत |
सधुक्कड़ी |
रैदास |
उत्तर भारत |
भक्ति संत |
ब्रज, अवधी |
भीखन दास |
बिहार (मगध क्षेत्र) |
निर्गुण संत, कबीर परंपरा |
भोजपुरी-सधुक्कड़ी |
💬 निष्कर्ष
भीखन दास जी भले ही इतिहास में अधिक प्रसिद्ध न हों, लेकिन उनकी वाणी आज भी मगध के लोगों के हृदय में बसी है। वे बिहार की निर्गुण संत परंपरा के मौन दीपक हैं, जिनकी लौ अभी भी बुझी नहीं है।
"भीखन कहे जो राम को, खोजै घट के बीच।
ना धूप, ना फूल, ना गंगा, बस भाव रखो नीच।