संत धनीराम दास: भोजपुरी संत वाणी का लोकस्तम्भ

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🌿 संत धनीराम दास: भोजपुरी संत वाणी का लोकस्तम्भ


"धनी के दरसन होइ, जइसे प्रभु के किरति।
मन-जीतै, तन-जीतै, हरै मन के मिरगी।"


📌 परिचय सारणी

विवरण

जानकारी

नाम

संत धनीराम दास जी

काल

अनुमानतः 18वीं सदी

जन्मस्थान

गोपालगंज / पश्चिम चंपारण (बिहार)

सम्बंध

निर्गुण भक्ति, संतमत

भाषा

भोजपुरी, अवधी, लोकसाहित्य की शैली

प्रमुख रचना

धनी वाणी, लोक सतसंग गीत

🌾 संत धनीराम का बिहार में प्रभाव

बिहार के उत्तर-पश्चिम भाग में विशेष रूप से ग्रामीण अंचलों में धनीराम भजन मंडली आज भी सक्रीय है। इन्होंने कबीर, रैदास, और तुलसी जैसी संत परंपरा को भोजपुरी स्वर दिया।

🚩 प्रमुख क्षेत्रों में प्रभाव:

  • सिवान – धनी सत्संग आश्रम
  • गोपालगंज – भजन-मंडली परंपरा
  • बेतिया – सत्संग सप्ताह एवं भंडारा परंपरा

🌼 संत धनीराम की वाणी – दृष्टिकोण

विषय

संत का दृष्टिकोण

निर्गुण ईश्वर

ईश्वर न मूर्ति में, न मंदिर में – आत्मा में निवास करता है

भेदभाव विरोध

जाति-पाति, धर्म के भेद के विरुद्ध

लोकसंवाद शैली

सीधे शब्दों में गूढ़ बात कहना

प्रेम-संवाद

ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग – प्रेम और समर्पण

🎶 प्रसिद्ध पंक्तियाँ

"जग जेतेरा, सब ठगेरा,
जिनके भीतर राम बसेरा।"

"ना कर मूर्ति, ना पूजे देव,
धनी कहे, भीतर खोजो वेव।"

"पिंड में बसे परमहंस,
काहे फिर तीरथ के फंद?"


📚 रचनात्मक धरोहर

  • संत धनीराम की वाणी लोक परंपरा में संरक्षित है।
  • उनकी वाणी को आज भी भोजपुरी भजन गायक लोकगीतों के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में हस्तलिखित पोथियों द्वारा उनकी शिक्षाएं प्रचारित होती हैं।

🤝 तुलनात्मक दृष्टि

संत

भाषा/शैली

क्षेत्रीय प्रभाव

कबीर

सधुक्कड़ी

संपूर्ण उत्तर भारत

धनीराम

भोजपुरी-लोक मिश्रण

चंपारण, गोपालगंज, सिवान

गरीबदास

ब्रज, साधु भाषा

हरियाणा, बिहार (आंशिक)

📍 बिहार में संत धनीराम वाणी की स्थिति

  • विद्यालयों में – कुछ लोक-कवि मंचों ने उनकी वाणी को पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रस्ताव रखा।
  • भजन संध्या – गंडक क्षेत्र की भजन संध्याओं में नियमित प्रयोग।
  • डिजिटल प्रयास – यूट्यूब पर उनके नाम से कई लोकगायकों ने उनकी वाणी को रिकॉर्ड किया है।

💬 निष्कर्ष

संत धनीराम दास बिहार की भोजपुरी संत परंपरा का एक अमूल्य स्तंभ हैं, जिन्होंने निर्गुण भक्ति को जनमानस की बोली में पिरोया। उनकी वाणी आज भी मन को छू जाती है और संत साहित्य की विशाल परंपरा में उन्हें एक विशिष्ट स्थान दिलाती है।

"धनी के वचन, राम के रथ समान।
सुनै जो तन-मन से, होई अज्ञान वितान।।"

 

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