बाबा धरनीदास: मिथिला की मिट्टी से निकला निर्गुण ज्ञान का पुजारी

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📖 बाबा धरनीदास: मिथिला की मिट्टी से निकला निर्गुण ज्ञान का पुजारी


"धरनीदास कहे मन माहीं, खोज राम रतन जहाँ थाह नाहीं।"


📌 परिचय सारांश

विवरण

जानकारी

नाम

बाबा धरनीदास (Dharni Das)

जन्मकाल

लगभग 1646 ई.

जन्मस्थान

मनियारपुर, जिला – समस्तीपुर, बिहार

संबंधित परंपरा

निर्गुण भक्ति, ज्ञान मार्ग

शिक्षा

संस्कृत, फारसी, लोकभाषा

भाषा

मैथिली, अवधी, भोजपुरी मिश्रित


✨ आध्यात्मिक जीवन और विचारधारा

बाबा धरनीदास ने एक समृद्ध ब्राह्मण परिवार में जन्म लिया, लेकिन सांसारिक वैभव त्यागकर भक्ति और आत्मज्ञान के मार्ग को चुना। उन्होंने:

  • मूर्ति-पूजा का विरोध किया
  • गुरु परंपरा में व्यक्तिगत आत्म-बोध को प्राथमिकता दी
  • जात-पात और धार्मिक आडंबरों की आलोचना की

📚 काव्य और दर्शन

🔷 रचनाएँ:

  1. "धरनी वाणी" – उनका प्रमुख काव्य संग्रह
  2. "राम रतन सागर" – आत्मबोध की गहराइयों से जुड़ा ग्रंथ
  3. "सत्यवाणी" – समाज-सुधार की पदावली

🔶 कुछ प्रसिद्ध वाणी-पंक्तियाँ:

"न मंदिर, न मस्जिद रे भाई,
घट भीतर जो बसे साई।"

"धरनी कहे जग है माया,
राम नाम में मोक्ष की छाया।"


🌍 सामाजिक प्रभाव

  • बाबा धरनीदास ने मिथिला क्षेत्र में एक निर्गुण संत परंपरा की नींव रखी।
  • उनके अनुयायी "धरनी संप्रदाय" कहलाते हैं, जो आज भी बिहार और नेपाल में सक्रिय हैं।
  • उन्होंने नारी समानता, नीच-ऊँच भेदभाव और पाखंडवाद के विरुद्ध मुखर विचार रखे।

🏛️ संस्था और मठ

स्थान

विवरण

धरनीदास आश्रम, समस्तीपुर

संत की समाधि स्थली, भजन सत्संग स्थल

धरनी संप्रदाय के मठ, नेपाल

आज भी उनके अनुयायी सक्रिय हैं

वार्षिक धरनी महोत्सव

भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी को मनाया जाता है


🧘 तुलनात्मक संत परंपरा

संत

क्षेत्र

परंपरा

विचारधारा

संत कबीर

बनारस

निर्गुण भक्ति

सामाजिक जागृति, ब्रह्मज्ञान

भीखन दास

मगध (बिहार)

कबीरपंथ

प्रेम भक्ति, समता

धरनीदास

मिथिला (बिहार)

निर्गुण ज्ञान मार्ग

आत्मज्ञान, सामाजिक चेतना


📣 निष्कर्ष

बाबा धरनीदास केवल संत नहीं, वे समाज सुधारक, कवि और आत्मा के गायक थे। उनके शब्द आज भी उत्तर बिहार और नेपाल के गाँवों में भजन मंडलियों द्वारा गाए जाते हैं। वे मिथिला की निर्गुण परंपरा के प्रकाशस्तंभ थे, जिनकी रचनाओं में जीवन, प्रेम, और सत्य की गहराइयाँ हैं।

"धरनी कहे घट भीतर जोती,
खोजत फिरै सकल जग खोती।"

 

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