अमीर खुसरो: भाषाओं, रागों और आत्माओं को जोड़ने वाला सूफी संत

जब भारत की सांस्कृतिक धरोहर की बात होती है, तो एक नाम अनायास ही स्मृति में उभर आता है — अमीर खुसरो। वे केवल एक कवि या संगीतज्ञ नहीं, बल्कि गंगा-जमुनी तहज़ीब के अमर प्रतीक, सूफी प्रेमधारा के स्रोत और हिंदवी भाषा के प्रथम कवि थे। उन्होंने अपने शब्दों से दिलों को जोड़ा, और अपने सुरों से आत्माओं को।
🪔 एक झलक: अमीर खुसरो का जीवन
- पूरा नाम: अबुल हसन यमीनुद्दीन खुसरो
- जन्म: 1253 ई., पटियाली (उत्तर प्रदेश)
- मृत्यु: 1325 ई., दिल्ली
- गुरु: हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया (चिश्ती सूफी संत)
- राज्याश्रय: दिल्ली सल्तनत के कई सुल्तानों के दरबारी कवि
खुसरो का जन्म ऐसे दौर में हुआ जब भारत में इस्लामिक सल्तनत अपनी जड़ें जमा रही थी। लेकिन उन्होंने अपनी रचनाओं में भारतीयता और सूफी प्रेम को आत्मसात किया, जिससे उनका साहित्य न किसी एक धर्म का रहा, न किसी एक भाषा का।
🖋️ खुसरो और हिंदवी भाषा
"ख़ुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग
तन मेरो मन पियू का, दोउ बसे इक रंग"
अमीर खुसरो पहले कवि माने जाते हैं जिन्होंने हिंदवी भाषा में रचनाएँ कीं। उन्होंने फारसी की गहराई और हिंदी की मिठास को एक साथ पिरोकर एक नई सांस्कृतिक चेतना को जन्म दिया।
🎶 संगीत में क्रांति
- क़व्वाली को जनप्रिय बनाने का श्रेय खुसरो को ही दिया जाता है।
- माना जाता है कि उन्होंने संगीत वाद्य यंत्रों जैसे सितार और तबला के प्रारंभिक रूपों को विकसित किया।
- उन्होंने भारतीय रागों को फारसी लय से जोड़कर सांस्कृतिक मेलजोल की नई ध्वनि रची।
"आज रंग है री माँ, रंग है री
मोरे श्याम रंग रसिया"
🌿 सूफी दर्शन और निज़ामुद्दीन औलिया
खुसरो, अपने गुरु हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया से अत्यंत प्रेम करते थे। उनका सूफी दर्शन केवल अल्लाह तक सीमित नहीं था, बल्कि हर जीव में ईश्वर की अनुभूति थी।
“मुझे अपने पीर से ऐसा प्रेम है,
जैसे आत्मा को परमात्मा से हो।”
उनकी रचनाएँ भक्तिकालीन संतों जैसे कबीर, मीराबाई और रैदास से अद्भुत समानता रखती हैं, जहाँ प्रेम, समर्पण और अहंकार का विसर्जन प्रमुख है।
📚 खुसरो की कुछ प्रसिद्ध रचनाएँ
फारसी में |
हिंदवी में |
मसनवी-ए-नुह-सिपहर |
छाप तिलक सब छीनी |
दीवान-ए-गुर्ज़ |
आज रंग है |
तहफत-उस-सिगर |
मोसे नैना मिलाय के |
इजलास-ए-खुसरो |
ऐ री सखी मोहे पिया घर आए |