🪔 संत कबीर दास: न मन्दिर, न मस्जिद – बस प्रेम की खोज

"कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर"
जब भारत धार्मिक कट्टरता, जातिवाद और पाखंड से घिरा था, तब कबीर दास एक जलते दीपक की तरह सामने आए।
वे ना तो मौलवी थे, ना पंडित।
ना वे शास्त्र पढ़े थे, ना वे मस्जिद में गए।
उनका धर्म सिर्फ़ एक था — प्रेम, करुणा और सत्य।
📜 संत कबीर का परिचय
- जन्म: 1398 ई. (संभावित), वाराणसी
- मृत्यु: 1518 ई., मगहर (उत्तर प्रदेश)
- धर्म: जन्म से मुस्लिम जुलाहा, विचारों से निर्गुण भक्त
- गुरु: स्वामी रामानंद
- परंपरा: निर्गुण भक्ति आंदोलन के प्रमुख स्तंभ
- भाषा: सधुक्कड़ी, अवधी, ब्रज, पंचमेल खिचड़ी
✍️ कबीर की रचनाएँ – सीधी, सच्ची, सुलगती हुई
कबीर की वाणी में संस्कृत की गरिमा नहीं, लेकिन सत्य की बिजली है।
वे सीधे दिल में उतरते हैं, झूठ को बेनकाब करते हैं, और प्रेम के बिना किसी भी साधना को व्यर्थ कहते हैं।
🌸 प्रसिद्ध दोहे:
"माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर
कर का मनका छोड़ के, मन का मनका फेर"
(हाथ से माला फेरने से कुछ नहीं, मन के विचारों को बदलो)
"पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय"
(शास्त्रों का बोझ व्यर्थ है यदि प्रेम का अर्थ नहीं समझा)
🪔 धर्मों की दीवार तोड़ने वाला संत
कबीर ने धर्म के नाम पर समाज में फैली पाखंडपूर्ण परंपराओं की तीव्र आलोचना की।
उन्होंने कहा:
- मंदिर में भगवान नहीं
- मस्जिद में खुदा नहीं
- ईश्वर उस प्रेमी के हृदय में है जो सच्चा है, निर्भीक है, निर्द्वंद है।
"मुक्ति कहे काहे रे बंदे, माटी के मोल बिकाया
प्रेम भक्ति का जो ले व्यापारी, ताहि मिलै हरि राया"
🎶 कबीर का संगीत
कबीर की वाणी को लोकगायकों, सूफी फकीरों और भक्ति परंपरा के साधकों ने गाया:
- कुमार गंधर्व, पंडित कुमार, पृथ्वी नाथ,
- पाकिस्तान के अबिदा परवीन,
- और आधुनिक दौर में अनुराग सैद्वलकर, नेहा बहुगुणा, Indian Ocean Band आदि
कबीर की वाणी आज भी मंचों पर जीवित है — चाहे वह कव्वाली हो, निर्गुण भजन हो या लोक-संगीत।
🤝 कबीर: हिंदू और मुसलमान दोनों के
"हिंदू कहे मोहि राम पियारा, तुर्क कहे रहमाना
आपस में दोउ लड़ि मरते हैं, मरम न कोई जाना"
कबीर के समय हिंदू-मुस्लिम समाज के बीच वैचारिक दीवारें थीं। कबीर ने इन दीवारों को प्रेम और तर्क की चोट से गिराया।
वे कहते हैं:
- "यदि तेरा धर्म तुझे दूसरों से नफरत सिखाए — तो वह धर्म नहीं, भ्रम है।"
- "यदि प्रेम नहीं, तो ईश्वर भी नहीं।"
📚 कबीर की अमर रचनाएँ
ग्रंथ |
विशेषता |
बीजक |
कबीर की मूल वाणी (साखी, सबद, रमैनी) |
कबीर ग्रंथावली |
तुलसीदास की भांति, कबीर के पदों का संग्रह |
कबीरवाणी |
अनेक संप्रदायों में भिन्न संस्करण |
🪶 कबीर की विरासत
- कबीर पंथ नामक परंपरा पूरे भारत, नेपाल और बांग्लादेश में फैली है।
- उनके विचार नास्तिक और आस्तिक दोनों को झकझोरते हैं।
- वे भक्ति, समाज सुधार और मानवता के सबसे बड़े प्रतीक हैं।
🔚 निष्कर्ष
"कबीर न हिन्दू थे, न मुसलमान।
वो एक आईना थे — जिसमें समाज, धर्म और स्वयं का चेहरा दिखता है।"
कबीर आज भी हमें यह सिखाते हैं कि ईश्वर कोई मूर्ति नहीं, कोई किताब नहीं — बल्कि सच्चे प्रेम और विचार में बसता है।