🌟 संत रविदास: आत्मा की पहचान से बड़ा कोई धर्म नहीं

"मन चंगा तो कठौती में गंगा"
जब जाति, कर्मकांड और बाहरी दिखावे ने धर्म को जकड़ लिया था, तब संत रविदास ने आत्मा की शुद्धता को सबसे बड़ा तीर्थ बताया।
वे कहते हैं —
"न कोई ऊँच, न कोई नीच। जो भजे राम, वही सबसे सच्चा साधक।"
🙏 परिचय: संत रविदास जी
- जन्म: 1450 ई. (संभावित), सीर गोवर्धनपुर, वाराणसी
- मृत्यु: 1520 ई. के आसपास
- जाति: चमार (मजदूर वर्ग), लेकिन आत्मज्ञान के परम ज्ञानी
- परंपरा: निर्गुण भक्ति आंदोलन, समाज-सुधारक
- गुरु: आत्मज्ञान के प्रकाशस्वरूप स्वयंसिद्ध संत
- भाषा: अवधी, ब्रज, सधुक्कड़ी
🔥 जातिवाद के विरुद्ध एक निर्भीक स्वर
"जात-पांत पूछे न कोई, हरि को भजे सो हरि का होई"
संत रविदास ने समाज की सबसे जटिल समस्या — जातिवाद — को चुनौती दी।
उन्होंने कहा:
- जो हृदय से ईश्वर को प्रेम करता है, वही सबसे बड़ा ब्राह्मण है।
- जो सेवा करता है, वही सच्चा सन्यासी है।
"काहे रे मूरख हठीाना, ब्राह्मण का करत अधियाना
जो ब्राह्मण ब्रह्म जानै, आपै गहै पड़ीआना"
(हे मूर्ख! क्यों ब्राह्मण को ऊँचा मानता है? यदि वह सच में ब्रह्म को जानता, तो अहंकार क्यों करता?)
✍️ संत रविदास की वाणी – सरल, गहरी, आत्ममंथन कराने वाली
उनकी वाणी किसी शास्त्र की गूढ़ता में नहीं उलझती, बल्कि सीधे आत्मा को झकझोर देती है।
🔮 कुछ प्रेरक पद:
"ऐसी लाल तुझ बिनु कौन करे
गरीब निवाजु गुसाईं मेरा माथे छत्र धरे"
"मन चंगा तो कठौती में गंगा"
(यदि मन पवित्र है, तो घर में ही गंगा है, तीर्थ unnecessary है)
"बिना हरि भजन ना होत सनेहा
जैसे बिना जल मछली मरे सदा"
👑 संत और सम्राज्ञी: मीरा बाई और संत रविदास
मीरा बाई ने रविदास जी को अपना गुरु माना था।
उनके द्वारा कहा गया पद आज भी प्रसिद्ध है:
"गुरु मिला रैदास जी, दीन्हीं ज्ञान की गाढ़ी।
मिट गई भ्रांति अज्ञान की, लखी राम की बाड़ी॥"
🏛 संत रविदास की सामाजिक क्रांति
- उन्होंने छूआछूत, जाति-विभाजन, और धार्मिक ठेकेदारों के विरुद्ध क्रांति छेड़ी।
- उन्होंने सामाजिक समरसता, न्याय, और आत्मगौरव को जाग्रत किया।
"बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर"
(बड़प्पन तब तक व्यर्थ है जब तक वह दूसरों के काम न आए)
📚 रचनाएँ
ग्रंथ |
विवरण |
रविदास रचनावली |
संत रविदास के पदों और भजनों का संग्रह |
गुरु ग्रंथ साहिब |
सिख धर्म की पवित्र पुस्तक में 41 पद रविदास जी के शामिल |
🛕 स्मृति और परंपरा
- श्री गुरु रविदास जन्मस्थली मंदिर, वाराणसी
- गुरु रविदास जयंती (माघ पूर्णिमा) देशभर में मनाई जाती है
- रविदासिया संप्रदाय, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और विदेशों में सक्रिय है
✨ निष्कर्ष
संत रविदास का जीवन यह संदेश देता है कि —
- धर्म बाहरी आडंबर नहीं, बल्कि अंतरात्मा की सजगता है।
- सेवा, समता और प्रेम से बड़ा कोई साधन नहीं।
वे उस युग के सूरज थे जो तमस में भी प्रकाश फैला गए, और आज भी उनकी वाणी हर पीड़ित आत्मा के लिए आशा की किरण है।