बाबा फुलेश्वरनाथ: मिथिला के लोकसंस्कृति में रमे संत की अद्भुत गाथा

webmaster
0

🔱 बाबा फुलेश्वरनाथ: मिथिला के लोकसंस्कृति में रमे संत की अद्भुत गाथा

"घट में खोजे राम को,
बाहर भ्रम में जाए।
जो जानै निज आत्मा को,
वही शिव स्वरूप कहाए।"


📌 परिचय

विषय

विवरण

नाम

बाबा फुलेश्वरनाथ

जन्म

18वीं सदी, फुलपरास क्षेत्र, मधुबनी (बिहार)

सम्बंधित परंपरा

शिव भक्ति, योग साधना, लोकधर्म

भाषा

मैथिली, संस्कृत मिश्रित

प्रभाव क्षेत्र

मिथिला, नेपाल तराई, उत्तर बिहार


🧘 अध्यात्मिक धारा

  • शिव के निर्गुण और साकार दोनों स्वरूपों को समान रूप से स्वीकार किया।
  • गाँवों में यज्ञ, भजन, सत्संग और लोकसंवाद से समाज को जोड़ते रहे।
  • कर्म और सेवा को भक्ति से ऊपर माना — "कर्म बिना भक्ति अधूरी है।"
  • ध्यान योग, हठयोग, और साधना में गहरा योगदान।

📚 लोक रचनाएँ

  • शिव तत्व वाणी – आत्मा-परमात्मा के मिलन की चर्चा
  • मिथिला गीतावली – शिव, पार्वती और शक्ति की स्तुति में रचित मैथिली भजन
  • ध्यान दीप – ध्यान और साधना की विधियाँ

प्रमुख विचार

"पिंड में ब्रह्मा, अंतर में शंकर,
देखे जो साधक, सो होय अमर।"

"जो बिठला दे अंदर के शोर को,
वही पहचाने आत्मा का ठौर।"


🌾 समाज सेवा में योगदान

क्षेत्र

योगदान

ग्राम विकास

गाँवों में कुएँ, तालाब, और धर्मशालाओं का निर्माण

नारी शिक्षा

बेटियों की शिक्षा और विवाह के लिए प्रचार-प्रसार

शिव संप्रदाय विस्तार

मिथिला में शिव लोकधर्म परंपरा को पुनर्जीवित किया

सामाजिक एकता

जातिवाद के विरुद्ध कठोर विचार और कार्य


📍 प्रमुख स्थल

  • फुलपरास स्थित बाबा फुलेश्वर धाम, आज भी संतों, योगियों और भक्तों की साधना स्थली है।
  • श्रावण मास में बड़ी संख्या में शिवभक्तों की उपस्थिति होती है।

🔁 अन्य समान संतों से तुलना

संत

क्षेत्र

विशेषता

संत धरनीदास

समस्तीपुर

निर्गुण भक्ति, संतवाणी

संत जगजीवन दास

पूर्व बिहार

सामाजिक चेतना, प्रेम मार्ग

बाबा फुलेश्वरनाथ

मिथिला, मधुबनी

शिव ध्यान, कर्मयोग, लोक संस्कृति


📝 निष्कर्ष

बाबा फुलेश्वरनाथ एक ऐसे संत थे जिन्होंने शास्त्र को जीवन से जोड़ा और जीवन को शिव की आराधना बना दिया। बिहार की मिथिला धरती को उन्होंने ज्ञान, योग, भक्ति और सेवा से सींचा। आज भी उनकी गाथा लोकगीतों, कथाओं और श्रद्धालुओं के हृदय में जीवित है।

"लोक में जो राम को देखे,
वह लोक भी पार हो जाए।
जिसने स्वयं को जान लिया,
शिवत्व सहज में पाए।"

 

Post a Comment

0 Comments

Post a Comment (0)
9/related/default