संत घासीदास: छत्तीसगढ़ के संत, जिन्होंने सत्य और समता का दीप जलाया

webmaster
0

🌿 संत घासीदास: छत्तीसगढ़ के संत, जिन्होंने सत्य और समता का दीप जलाया


"मनखे-मनखे एक समान"
(मनुष्य-मनुष्य में कोई भेद नहीं)


📌 संक्षिप्त परिचय

विवरण

जानकारी

पूरा नाम:

संत गुरु घासीदास

जन्म:

लगभग 1756–1761 ई., गिरौदपुरी, जिला रायपुर (अब बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़)

मृत्यु:

1836 ई.

संप्रदाय:

सतनामी संप्रदाय (छत्तीसगढ़ीय परंपरा)

प्रमुख शिक्षाएँ:

सत्य, अहिंसा, समानता, मूर्तिपूजा विरोध

🌱 जीवन परिचय

संत घासीदास का जन्म एक दलित (चमार जाति) परिवार में हुआ। बचपन से ही उन्हें सामाजिक भेदभाव और ऊँच-नीच का गहरा अनुभव था। उनका जीवन संघर्ष, ध्यान और आत्मचिंतन का रहा।

कई वर्षों के तपस्या के बाद उन्होंने "सतनाम" (सच्चे नाम) को ही मोक्ष का मार्ग बताया और जाति, पंथ, वर्ण भेद के विरुद्ध एक नया आंदोलन खड़ा किया।


🕉️ प्रमुख सिद्धांत और शिक्षाएँ

सिद्धांत

विवरण

सतनाम का जाप

केवल एक ही सच्चा नाम है — "सतनाम", उसी की उपासना करो।

मानव समानता

सभी मनुष्य बराबर हैं — कोई छोटा-बड़ा नहीं।

मूर्तिपूजा का विरोध

निराकार ब्रह्म की आराधना — मूर्तियों में ईश्वर नहीं।

सादा जीवन, उच्च विचार

बाहरी आडंबर त्याग कर भीतर की साधना में लगो।

अहिंसा और करुणा

जीव मात्र में परमात्मा का वास है, हिंसा न करो।

🪔 प्रतीक और कार्य

  • जय स्तंभ (सत्य का प्रतीक):
    संत घासीदास जी ने एक सफेद जड़ाऊ स्तंभ स्थापित किया, जो सत्य और न्याय का प्रतीक माना जाता है।
    आज भी सतनामी समुदाय इसे पूजता है।
  • गिरौदपुरी धाम:
    छत्तीसगढ़ का पवित्र तीर्थ स्थान, जहाँ संत घासीदास जी को ज्ञान की अनुभूति हुई।
  • सतनामी संप्रदायकी स्थापना:
    जाति-पाति से परे, समता और सत्य पर आधारित समाज की परिकल्पना।

🎵 लोकजीवन और प्रभाव

  • संत घासीदास के प्रवचन छत्तीसगढ़ी लोकभाषा में थे — सहज, सरल और प्रभावशाली।
  • उनके अनुयायी आज भी 'सतनामी गीत', 'पंथी नृत्य' और 'जय स्तंभ' यात्रा के माध्यम से उनकी शिक्षाओं को जीवित रखते हैं।

🌍 सामाजिक प्रभाव

क्षेत्र

योगदान

सामाजिक सुधार

छुआछूत, भेदभाव, आडंबर का विरोध

शिक्षा और जागरूकता

ग्राम-ग्राम जाकर सच्चाई और भक्ति का प्रचार

अहिंसक आंदोलन

बिना किसी विद्रोह के परिवर्तन का मार्ग

📚 विरासत

  • छत्तीसगढ़ शासन द्वारा गुरु घासीदास विश्वविद्यालय, बिलासपुर में स्थापित
  • हर वर्ष गिरौदपुरी मेले में लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं
  • उनके विचार आज भी भारत के समाज सुधारकों और दलित चेतना आंदोलनों के मूल स्तंभ बने हुए हैं।

🔖 प्रेरणादायक कथन

"जो सबके लिए करुणावान है, वही सच्चा साधक है।"
"किसी को छोटा मत समझो — सब में वही परमात्मा है।"

 

Post a Comment

0 Comments

Post a Comment (0)
9/related/default