🌺 मीरा बाई का जीवन-शैली (Lifestyle of Meera Bai)

1. गृहस्थ से वैराग्य की ओर यात्रा
- मेवाड़ के राणा रत्नसिंह से विवाह के बाद भी मीरा का मन सांसारिक जीवन में नहीं लगा।
- वह बाल्यकाल से ही श्रीकृष्ण को अपना पति मानती थीं — इसलिए उन्होंने वैवाहिक जीवन से वैराग्य लिया।
- उन्होंने अपने वैवाहिक संबंधों को कृष्णभक्ति के मार्ग में बाधा माना।
2. साधु-संगति और भजन
- मीरा साधु-संतों के संग उठती-बैठती थीं, जो राजमहल को स्वीकार नहीं था।
- वह दिन-रात कृष्ण के भजन गाती थीं: “मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।”
- उन्होंने लोकल भाषा में भजन गाकर साधारण जन को भक्ति का मार्ग दिखाया।
3. सादगीपूर्ण वस्त्र और जीवनचर्या
- उन्होंने राजसी वस्त्र, गहने और विलासिता को त्याग दिया।
- सामान्य स्त्रियों की तरह सफेद वस्त्र, तुलसी की माला, और मृदु भाषा का व्यवहार करती थीं।
- उन्हें कभी भी ऐश्वर्य या पद की लालसा नहीं रही।
4. स्वतंत्र चिंतन और आत्म-सम्मान
- मीरा ने समाज और रीतियों की परवाह नहीं की।
- पति के मरने के बाद जब उनसे कृष्णभक्ति त्यागने को कहा गया, तो उन्होंने अपना घर छोड़ दिया।
- उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज की अवहेलना के बावजूद आत्मा की स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया।
5. भक्ति आधारित संगीत और कविता
- मीरा बाई एक सिद्ध कवयित्री और संगीत साधिका थीं।
- उनके द्वारा रचित भजन आज भी भक्ति संगीत की शिखर साधना माने जाते हैं।
- वे तन्मय होकर तम्बूरा लेकर अकेले गली-गली घूमकर कृष्ण-गान करती थीं।
6. नारी स्वतंत्रता और आध्यात्मिक विद्रोह
- वे मध्यकालीन भारत में स्त्री स्वतंत्रता की अद्वितीय उदाहरण बनीं।
- उन्होंने जात-पात, स्त्री को नीचा दिखाने वाली परंपराओं और पुरुष-प्रधान समाज का विरोध किया — पर शांति और भक्ति के मार्ग से।
7. अंत समय: श्रीनाथजी में लीनता
- कहा जाता है कि मीरा अंत समय में द्वारका चली गईं और वहां श्रीनाथजी मंदिर में कृष्ण में लीन हो गईं।
- कुछ मान्यताओं के अनुसार, वह भौतिक शरीर सहित भगवान में समा गईं।
🌸 मीरा का जीवन हमें क्या सिखाता है?
- आत्मा की पुकार को सुनना चाहिए, चाहे समाज कुछ भी कहे।
- प्रेम और भक्ति में जाति, लिंग, परंपरा या अधिकार का बंधन नहीं होता।
- सच्चा प्रेम – भक्ति का रूप ले ले तो वह जीवन को मोक्ष तक पहुँचा सकता है।